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श्रीराम सेंटर में हुआ भीष्म साहनी के नाटक “हिसाब बाकी…?” का प्रभावशाली मंचन

नई दिल्ली, 27 मार्च 2025 – विश्व रंगमंच दिवस के अवसर पर श्रीराम सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स में सुप्रसिद्ध लेखक भीष्म साहनी की कहानी पर आधारित नाटक “हिसाब बाकी…?” का मंचन किया गया। यह नाटक सांप्रदायिक दंगों और मुआवजे की राजनीति पर कटाक्ष करता है, जो दर्शकों को सोचने पर मजबूर कर देता है।

नाटक का निर्देशन और प्रस्तुतिकरण

इस नाटक का निर्देशन सुभाष चंद्रा ने किया, जिसे वीकेंड थिएटर बैच के कलाकारों ने शानदार ढंग से मंचित किया। नाटक में नौकरशाही, राजनीति और आम जनता के संघर्ष को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया गया, जिससे दर्शक पूरे समय भावनात्मक रूप से जुड़े रहे।

शानदार अभिनय और कलाकारों का योगदान

नाटक में कई प्रतिभाशाली कलाकारों ने अपने अभिनय से जान डाल दी। प्रमुख कलाकारों में शामिल थे:
अभिषेक, अमित, अवनीत, कबीर, किरण, लोकेश, मान्या, मनीषा, मनजोत, मोक्षी, मोना, प्रभिनूर, समृद्ध, सौरव, शिवम, सिद्दांत, सिद्घिका, और सोनी।

नाटक की थीम और प्रस्तुति

“हिसाब बाकी…?” सरकारी मुआवज़े की प्रक्रिया और उसमें व्याप्त विसंगतियों को उजागर करता है। यह नाटक दिखाता है कि कैसे एक व्यक्ति, जिसे दंगों में कोई नुकसान नहीं हुआ, मुआवजा प्राप्त करने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाने की कोशिश करता है। समाज की सच्चाइयों को व्यंग्य और हास्य के माध्यम से प्रस्तुत करते हुए, नाटक प्रशासनिक जटिलताओं और सामाजिक विडंबनाओं को बखूबी दर्शाता है।

तकनीकी पक्ष और निर्देशन की खासियत

  • सेट डिज़ाइन: पंकज ध्यानी द्वारा तैयार किया गया, जिसने मंच पर यथार्थवादी माहौल रचा।

  • रूपांतरण: मान्या वधेहरा, सिद्घिका सुदान, सिद्दांत सिंह और अमित कुकरेती ने इसे और अधिक रोचक बनाया।

  • प्रकाश और ध्वनि प्रभाव: मंच पर लाइटिंग और साउंड का शानदार तालमेल रहा, जिससे दर्शकों को प्रभावशाली अनुभव मिला।

  • प्रस्तुति शैली: नाटक में हास्य और व्यंग्य के माध्यम से गहरी सामाजिक सच्चाइयों को प्रभावशाली ढंग से उभारा गया।

दर्शकों की प्रतिक्रिया

नाटक के दौरान दर्शकों की प्रतिक्रिया बेहद उत्साहजनक रही। इसे एक प्रभावशाली और विचारोत्तेजक प्रस्तुति बताया गया। थिएटर प्रेमियों और समीक्षकों ने पटकथा, निर्देशन और अभिनय की जमकर सराहना की।

समाज को आईना दिखाने वाला नाटक

“हिसाब बाकी…?” केवल एक नाटक नहीं, बल्कि समाज को आईना दिखाने वाला एक सशक्त माध्यम साबित हुआ। विश्व रंगमंच दिवस के इस खास मौके पर प्रस्तुत इस नाटक ने दर्शकों को गहराई से प्रभावित किया और उन्हें समाज की हकीकतों पर सोचने के लिए मजबूर कर दिया।

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