Eid ul Fitr 2025: चांद के दीदार के बाद आज देशभर में धूमधाम से मनाई जा रही ईद

Eid ul Fitr 2025: चांद के दीदार के बाद आज देशभर में धूमधाम से मनाई जा रही ईद
ईद-उल-फितर दुनिया भर के मुसलमानों के लिए सबसे खास त्योहारों में से एक है। यह त्योहार रमजान के पवित्र महीने की समाप्ति के बाद मनाया जाता है, जब मुसलमान पूरे महीने रोजे रखते हैं, इबादत करते हैं और अल्लाह से रहमत की दुआ मांगते हैं। जैसे ही आसमान में ईद का चांद नजर आता है, मुसलमानों के दिलों में खुशी की लहर दौड़ जाती है। यह चांद सिर्फ एक खगोलीय घटना नहीं, बल्कि यह बीते महीने की इबादत, त्याग और अल्लाह की बंदगी का इनाम होता है।
रमजान का महीना इस्लामिक कैलेंडर का नौवां महीना होता है, जिसमें मुसलमान सूरज निकलने से लेकर सूरज डूबने तक बिना कुछ खाए-पिए रोजा रखते हैं। इस दौरान वे न सिर्फ अपनी इच्छाओं पर काबू पाते हैं, बल्कि गरीबों और जरूरतमंदों के दर्द को भी महसूस करते हैं। यह महीना खुदा की इबादत करने, बुराइयों से बचने और नेक राह पर चलने की सीख देता है। पूरे महीने की इबादत के बाद, जब शव्वाल का पहला दिन आता है, तो ईद का त्योहार मनाया जाता है।
जैसे ही ईद का चांद नजर आता है, हर गली-मोहल्ले में खुशी की लहर दौड़ जाती है। बाजारों में चहल-पहल बढ़ जाती है, लोग नए कपड़े खरीदते हैं, घरों की सफाई करते हैं और ईद की तैयारियों में जुट जाते हैं। इस दिन हर कोई नए कपड़े पहनता है, इत्र लगाता है और मस्जिदों या ईदगाहों में जाकर विशेष नमाज अदा करता है। नमाज के बाद लोग एक-दूसरे को गले लगाकर ईद की बधाई देते हैं, जिससे समाज में प्यार और भाईचारे का संदेश जाता है।
ईद-उल-फितर को मीठी ईद भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन हर घर में विशेष रूप से मीठे पकवान बनाए जाते हैं। सेवइयां, शीरखुर्मा और अन्य मिठाइयों की खुशबू से घर महक उठते हैं। परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर इन व्यंजनों का आनंद लिया जाता है। इस दिन सिर्फ अपने लिए ही नहीं, बल्कि गरीबों और जरूरतमंदों के लिए भी खास ध्यान दिया जाता है। इस्लाम में फितरा देना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है, जिसे ‘सदका-ए-फित्र’ भी कहा जाता है। फितरा एक प्रकार का दान होता है, जिसे ईद की नमाज से पहले अदा करना आवश्यक होता है। इसका उद्देश्य यह है कि कोई भी व्यक्ति भूखा न रहे और हर कोई इस खुशी में शामिल हो सके।
ईद मनाने की परंपरा इस्लाम में 2 हिजरी यानी 624 ईस्वी से चली आ रही है। ऐसा माना जाता है कि जब पैगंबर हजरत मुहम्मद ने बद्र की लड़ाई में जीत हासिल की थी, तो उन्होंने इस खुशी में लोगों का मुंह मीठा करवाया था। तभी से ईद-उल-फितर की शुरुआत मदीना में हुई और यह परंपरा आज भी जारी है।
ईद का असली मतलब सिर्फ जश्न मनाना नहीं, बल्कि इसे उन लोगों के साथ खुशियां बांटने का अवसर माना जाता है, जिन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत होती है। इस दिन लोग गरीबों, अनाथों और जरूरतमंदों की मदद करते हैं। फितरा देने की कोई निश्चित सीमा नहीं होती, इसे व्यक्ति अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान कर सकता है।
रमजान के पूरे महीने मुसलमान अल्लाह की इबादत में लीन रहते हैं। इस दौरान हर रात विशेष तरावीह की नमाज अदा की जाती है। यह नमाज आम दिनों की तुलना में थोड़ी लंबी होती है और इसे विशेष तौर पर रमजान के महीने में पढ़ा जाता है। ईद के दिन अदा की जाने वाली नमाज का भी विशेष महत्व होता है। यह दो रकात में अदा की जाती है और इसे सामूहिक रूप से मस्जिदों या ईदगाहों में पढ़ा जाता है। नमाज खत्म होने के बाद लोग एक-दूसरे से मिलते हैं, गले लगते हैं और ईद की मुबारकबाद देते हैं।
ईद का यह त्योहार हर साल लोगों को एकता, भाईचारे और प्रेम का संदेश देता है। यह सिर्फ एक धार्मिक त्योहार नहीं, बल्कि यह एक ऐसा अवसर है, जब लोग अपने गिले-शिकवे भुलाकर एक-दूसरे के करीब आते हैं और समाज में प्रेम और सौहार्द की भावना को मजबूत करते हैं।