Bihar Voter List Dispute: बिहार वोटर लिस्ट विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी—‘जो आयोग कर रहा है, वह उसका संवैधानिक अधिकार’

Bihar Voter List Dispute: बिहार वोटर लिस्ट विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी—‘जो आयोग कर रहा है, वह उसका संवैधानिक अधिकार’
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) से जुड़ी याचिकाओं पर अहम सुनवाई हुई। इस सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि निर्वाचन आयोग जो कर रहा है, वह उसका संवैधानिक दायित्व है और आयोग को यह प्रक्रिया पहले ही शुरू कर देनी चाहिए थी।
यह मामला तब सामने आया जब कुछ याचिकाकर्ताओं ने बिहार में चल रहे मतदाता सूची पुनरीक्षण को चुनौती देते हुए आरोप लगाया कि यह प्रक्रिया मनमाने ढंग से चलाई जा रही है और इसमें पारदर्शिता का अभाव है। याचिकाकर्ता ने खास तौर पर यह सवाल उठाया कि मतदाता पहचान पत्र (EPIC) और आधार कार्ड को इस प्रक्रिया में मान्यता क्यों नहीं दी जा रही है।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जे. बागची शामिल थे, ने निर्वाचन आयोग और याचिकाकर्ताओं दोनों से सवाल किए और दलीलें सुनीं। अदालत ने निर्वाचन आयोग से पूछा कि क्या कानून में स्पष्ट किया गया है कि इस तरह के विशेष पुनरीक्षण कब और कैसे किए जाने चाहिए। अदालत ने साथ ही यह भी कहा कि आयोग को यह प्रक्रिया पहले शुरू करनी चाहिए थी।
चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी, केके वेणुगोपाल और मनिंदर सिंह ने अदालत में पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि आयोग को याचिकाओं पर कुछ प्रारंभिक आपत्तियां हैं और आयोग मतदाता सूची संशोधन की प्रक्रिया को अंतिम रूप देने से पहले अदालत को इस पर अवगत कराएगा।
इस पर जस्टिस धूलिया ने स्पष्ट किया कि एक बार मतदाता सूची अधिसूचित हो गई तो उसे कोई भी अदालत संशोधित नहीं कर सकेगी। इसलिए यह आवश्यक है कि संशोधन प्रक्रिया की निगरानी पहले की जाए।
याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि पूरे विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) में लगभग 7.9 करोड़ नागरिकों को शामिल किया जाएगा और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत मतदाता सूची में संशोधन पूरी तरह अनुमेय है। उन्होंने यह भी दोहराया कि मतदाता पहचान पत्र और आधार जैसी सरकारी मान्यता प्राप्त पहचान को इस प्रक्रिया में अनदेखा किया जा रहा है, जो कि चिंताजनक है।
इस पूरी प्रक्रिया में सुप्रीम कोर्ट ने एक संतुलित रुख अपनाते हुए यह सुनिश्चित करने की कोशिश की कि निर्वाचन आयोग अपने संवैधानिक दायित्व को निभाते हुए पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करे। साथ ही, याचिकाकर्ताओं की चिंताओं को भी गंभीरता से लिया गया और यह आश्वासन मांगा गया कि अंतिम अधिसूचना से पहले अदालत को पूरी स्थिति से अवगत कराया जाएगा।