CJI BR Gavai Oath: जस्टिस बीआर गवई बने देश के 52वें मुख्य न्यायाधीश, मां के चरण स्पर्श से की कार्यकाल की शुरुआत

CJI BR Gavai Oath: जस्टिस बीआर गवई बने देश के 52वें मुख्य न्यायाधीश, मां के चरण स्पर्श से की कार्यकाल की शुरुआत
भारत के न्यायिक इतिहास में आज एक नया अध्याय जुड़ गया जब जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई ने देश के 52वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में शपथ ली। राष्ट्रपति भवन में आयोजित संक्षिप्त परंतु गरिमामय समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, गृहमंत्री अमित शाह सहित देश के कई वरिष्ठ न्यायाधीश और पूर्व CJI भी उपस्थित रहे।
जस्टिस गवई ने शपथ ग्रहण के बाद मंच से उतरकर सबसे पहले अपनी मां के चरण स्पर्श किए, जो उनकी पारिवारिक और सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ी भावनात्मक अभिव्यक्ति थी। उनका मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्यकाल 6 महीने का होगा, क्योंकि वह आगामी 23 नवंबर 2025 को 65 वर्ष की आयु पूरी कर सेवानिवृत्त हो जाएंगे।
जस्टिस गवई ने न्यायिक सेवा में चार दशक से अधिक समय दिया है। उनका जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ था। वह बॉम्बे हाई कोर्ट में 2003 में अतिरिक्त न्यायाधीश और 2005 में स्थायी न्यायाधीश बनाए गए। बाद में वह 24 मई 2019 को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश नियुक्त हुए। सीजेआई संजीव खन्ना के सेवानिवृत्त होने के बाद वह वरिष्ठता के आधार पर अगला मुख्य न्यायाधीश चुने गए।
विधि मंत्रालय ने 14 मई 2025 को उन्हें औपचारिक रूप से सीजेआई नियुक्त करने की अधिसूचना जारी की थी, जो संविधान के अनुच्छेद 124(2) के तहत राष्ट्रपति की अनुशंसा पर आधारित थी। पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने 16 अप्रैल को ही केंद्र सरकार को जस्टिस गवई के नाम की सिफारिश कर दी थी।
जस्टिस गवई का न्यायिक अनुभव गहरा और विविध रहा है। उन्होंने नागपुर नगर निगम, अमरावती नगर निगम, और अमरावती विश्वविद्यालय के लिए वकील के रूप में कार्य किया। साथ ही, वह सरकारी वकील और अभियोजक के तौर पर भी कार्यरत रहे। सुप्रीम कोर्ट में उनके द्वारा सुनाए गए निर्णयों में कई ऐतिहासिक फैसले शामिल हैं। वह पांच सदस्यीय संविधान पीठ का हिस्सा रहे, जिसने धारा 370 हटाने के केंद्र सरकार के निर्णय को सही ठहराया। इसके अलावा, वह उस पीठ का भी हिस्सा रहे जिसने चुनावी बॉण्ड योजना को असंवैधानिक ठहराया और विमुद्रीकरण (नोटबंदी) के फैसले को भी वैध घोषित किया।
जस्टिस बीआर गवई के सीजेआई बनने का विशेष महत्व इसलिए भी है क्योंकि वह सामाजिक रूप से वंचित वर्ग से आने वाले पहले व्यक्ति हैं जो सर्वोच्च न्यायपालिका के इस सर्वोच्च पद तक पहुंचे हैं। यह न सिर्फ भारतीय संविधान की समावेशी भावना को दर्शाता है, बल्कि न्यायपालिका में सामाजिक प्रतिनिधित्व को भी मजबूती देता है।
उनकी न्यायिक दृष्टि, संविधान के प्रति आस्था और निष्पक्ष निर्णयों की क्षमता से देश की न्याय व्यवस्था को नई दिशा मिलने की उम्मीद की जा रही है।