Pakistan Bus Attack: पाकिस्तान में जातीय नफरत का कत्लेआम: बस से उतारकर 9 पंजाबियों की गोली मारकर हत्या, बलूचिस्तान फिर बना हिंसा का अड्डा
कराची, 10 जुलाई — पाकिस्तान में एक बार फिर जातीय और क्षेत्रीय हिंसा ने खूनी रूप ले लिया है। बलूचिस्तान प्रांत के झोब जिले में एक भयावह घटना के तहत बंदूकधारियों ने क्वेटा से लाहौर जा रही एक यात्री बस को रोककर पंजाब प्रांत के 9 यात्रियों को पहचान पत्र देखकर नीचे उतारा और उन्हें बेरहमी से गोली मार दी। यह कत्लेआम पाकिस्तान के आंतरिक ताने-बाने पर सवाल खड़े करता है, जहां नागरिकों की पहचान अब उनकी जान की कीमत बनती जा रही है।
घटना शुक्रवार को झोब इलाके में राष्ट्रीय राजमार्ग पर हुई। झोब के सहायक आयुक्त नवीद आलम ने जानकारी दी कि हमलावरों ने पहले सभी यात्रियों के पहचान पत्रों की जांच की और पंजाब प्रांत के 9 यात्रियों की पहचान होने के बाद उन्हें जबरन बस से उतारा। इसके बाद उन्हें सड़क के किनारे ले जाकर अंधाधुंध गोलियों से भून दिया गया। सभी मृतकों के शवों को पोस्टमार्टम के लिए नजदीकी अस्पताल भेजा गया है।
यह क्रूर हमला उस समय हुआ है जब देश पहले से ही आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों और राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहा है। अभी तक इस हमले की जिम्मेदारी किसी भी विद्रोही या आतंकवादी समूह ने नहीं ली है, लेकिन बलूचिस्तान की पृष्ठभूमि को देखते हुए शक की सुई बलूच अलगाववादी संगठनों की ओर जाती है।
बलूचिस्तान, जो पाकिस्तान के सबसे बड़े और सबसे कम आबादी वाले प्रांतों में से एक है, लंबे समय से असंतोष और हिंसक विद्रोह की आग में झुलस रहा है। यह इलाका ईरान और अफगानिस्तान की सीमाओं से सटा है और खनिज तथा ऊर्जा संसाधनों से समृद्ध है। लेकिन यहां के स्थानीय समुदायों का दावा है कि केंद्र सरकार संसाधनों का दोहन कर रही है लेकिन विकास और अधिकारों से उन्हें वंचित रखा जा रहा है।
बलूच विद्रोही अक्सर पाकिस्तानी सुरक्षाबलों, सरकारी ठेकों और रणनीतिक परियोजनाओं जैसे चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) पर हमले करते रहे हैं। CPEC पाकिस्तान के लिए 60 अरब डॉलर की महत्वाकांक्षी परियोजना है, जो चीन के ग्वादर पोर्ट को शिनजियांग से जोड़ती है। बलूच चरमपंथियों का आरोप है कि यह परियोजना स्थानीय लोगों के हितों की अनदेखी करती है।
हाल के महीनों में बलूचिस्तान में आतंकी गतिविधियों में तेजी आई है। क्वेटा, लोरालाई और मस्तुंग जैसे इलाकों में भी हाल में आतंकी हमले दर्ज किए गए थे। बलूचिस्तान सरकार के प्रवक्ता शाहिद रिंद ने कुछ दिनों पहले दावा किया था कि सुरक्षा बलों ने आतंकवादियों के कई प्रयासों को नाकाम किया है, लेकिन यह घटना उनकी तैयारियों पर गंभीर सवाल खड़े करती है।
इस जघन्य हत्याकांड ने पूरे पाकिस्तान में आक्रोश और शोक की लहर पैदा कर दी है। मानवाधिकार संगठनों और राजनीतिक दलों ने इस अमानवीय कृत्य की निंदा करते हुए दोषियों की तत्काल गिरफ्तारी की मांग की है। साथ ही, यह घटना यह भी उजागर करती है कि पाकिस्तान में क्षेत्रीय और जातीय पहचान को लेकर कितनी असहिष्णुता फैल चुकी है।
पंजाब के निर्दोष नागरिकों को सिर्फ उनकी पहचान के कारण मौत के घाट उतार दिया जाना एक संगठित नफरत की ओर इशारा करता है, जिससे न केवल देश की सुरक्षा व्यवस्था बल्कि सामाजिक एकता भी खतरे में पड़ती जा रही है।
बलूचिस्तान में स्थायी शांति और विकास के लिए केवल सैन्य कार्रवाई पर्याप्त नहीं है। ज़रूरत है समावेशी संवाद, न्यायपूर्ण संसाधन वितरण और स्थानीय लोगों के आत्मसम्मान को बहाल करने की। अन्यथा, इस खूनी चक्र का अंत जल्द होता नहीं दिखता।